अजीब दास्ताँ है ये
कहाँ शुरू कहाँ ख़तम
ये मंज़िलें है कौन सी
न वो समझ सके न हम
अजीब दास्ताँ है ये…
ये रौशनी के साथ क्यूँ
धुआं उठा चिराग से
ये ख्वाब देखती हूँ मैं
के जग पड़ी हूँ ख्वाब से
अजीब दास्ताँ है ये…
मुबारकें तुम्हें के तुम
किसी के नूर हो गए
किसी के इतने पास हो
के सबसे दूर हो गए
अजीब दास्ताँ है ये…
किसी का प्यार ले के तुम
नया जहां बसाओगे
ये शाम जब भी आएगी
तुम हमको याद आओगे
अजीब दास्ताँ है ये…
फिल्म -दिल अपना प्रीत और पराई
संगीत -शंकर जयकिशन
गीतकार -शैलेन्द्र
गायिका -लता मंगेशकर