कहीं दूर जब दिन ढल जाये
साँझ की दुल्हन बदन चुराए
चुपके से आये
मेरे ख्यालों के आँगन में
कोई सपनों के दीप जलाए
कभी यूँ ही जब हुई बोझल साँसें
भर आईं बैठे-बैठे जब यूँ ही आँखें
तभी मचल के प्यार से चल के
छुए कोई मुझे पर नज़र न आये
कहीं दूर जब दिन ढल जाये…
कहीं तो ये दिल कभी मिल नहीं पाते
कहीं पे निकल आये जन्मों के नाते
है मीठी उलझन बैरी अपना मन
अपना ही हो के सहे दर्द पराये
कहीं दूर जब दिन ढल जाये…
दिल जाने मेरे सारे भेद ये गहरे
खो गये कैसे मेरे सपने सुनहरे
ये मेरे सपने, यही तो हैं अपने
मुझसे जुदा न होंगे इनके ये साये
कहीं दूर जब दिन ढल जाये…
Movie:आनंद (1971)
Music:सलिल चौधरी
Lyrics:योगेश
singer:मुकेश