क्या देखते हो, सूरत तुम्हारी
क्या चाहते हो, चाहत तुम्हारी
ना हम जो कह दें, कह ना सकोगी
लगती नहीं ठीक नीयत तुम्हारी
क्या देखते हो…
रोज़ रोज़ देखूँ तुझे, नई-नई लगे मुझे
(तेरे) अंगों में अमृत की धारा
दिल लेने के ढंग तेरे, सीखे कोई रंग तेरे
(तेरी) बातों का अन्दाज़ प्यारा
शरारत से चेहरा चमकने लगा क्यों
ये रंग लाई है संगत तुम्हारी
क्या देखते हो…
सोचो ज़रा जान-ए-जिगर, बीतेगी क्या तुम पे अगर
(तुमसे) हमको जो कोई चुरा ले
किसी ने जो तुम्हें छीना, नामुमकिन है उसका जीना
(तुम पे) कैसे नज़र कोई डाले
प्यार पे अपने इतना भरोसा
जितना मोहब्बत में फितरत हमारी
क्या देखते हो…
Movie:क़ुर्बानी (1980)
Music:कल्याणजी-आनंदजी
Lyrics:इंदीवर
singer:मोहम्मद रफी, आशा भोंसले